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भगवान राम का जन्म और अयोध्या में प्रवेश By वनिता कस्निया पंजाब भगवान राम का अवतार जीवों पर दया करने के लिए था । भगवान भारत भूमि पर 24 अवतार लेते हैं । कृष्ण भगवान का अवतार जीवों पर दया करने के लिए था । इसी तरह बाकी के अवतार भी जीवों का कल्याण करने के लिए थे । लेकिन एक दिन भगवान कल्कि आयेंगे और घोड़े पर सवार होकर सभी पापियों को मार देंगे । भगवान कल्कि गीता का ज्ञान नहीं देंगे, भगवान कल्कि अपने हाथ में तलवार लेकर सभी पापियों को मार देंगे । अब्दुल रहीम खान खाना ने जब रामचरितमानस पढ़ी तब उन्होंने कहा कि कि रामचरितमानस केवल हिंदुओं का ग्रंथ नहीं है वल्कि यह तो संपूर्ण मानव जाति का ग्रंथ है । गोस्वामी जी कहते हैं कि जो रामचरितमानस सरोवर में श्रद्धा पूर्वक स्नान करेंगे वे इस संसार रूपी सूरज की किरणों से नहीं जलेंगे । यह भी पढ़ें – माता कैकई का चरित्र वर्णाश्रम में विश्वास रखने वालों का भी रामचरितमानस से उद्धार होगा और जो विश्वास नहीं रखते हैं उनका भी उद्धार होगा । राम भगवान का जन्म जगत के मंगल के लिए ही हुआ । राम किसी सम्प्रदाय विशेस नहीं हैं । राम का एक अर्थ है जो सभी राष्ट्रों का मंगल करते हैं वे हैं राम । भगवान राम किसी एक के नहीं । कोई भी श्री राम कहेगा उसका कल्याण होगा । गोस्वामी तुलसीदास जी विनयपत्रिका में कहते हैं कि अगर जीव राम नाम नहीं जपेगा तो उसे कभी भी सुख मिलने वाला नहीं है । अब्दुल राम रहीम खान खाना ने कहा कि रामचरित मानस हिंदुओं के लिए वेद है और मुसलमानों के लिए कुरान है । भगवान राम का जन्म भगवान राम ने जन्म लेते ही सारे अनर्थ समाप्त कर दिए । भगवान राम इतना सुंदर रो रहे थे कि 702 महलों में आवाज जा रही थी । महाराज दशरथ बहुत प्रसन्न हो गए । जिनका राम सुनने से सुभ हो जाता है वो श्री राम दशरथ जी के यहां अवतरित हुए । जब दसरथ जी को पता चला तो कि प्रभु राम उनके यहां अवतरित हुए हैं तो वे सिंहासन से कूद पड़े । दशरथ जी स्वयं महर्षि वसिष्ठ जी के पास गए । जब प्रभु श्री राम को वसिष्ठ जी ने देखा तब कोशल्या जी से कहा कि बालक बहुत प्यारा है मुझे गोद में लेने का मन कर रहा है । चारों ओर बधाईयां बज रहीं हैं । जब भगवान श्री राम का जन्म हुआ तब एक दिन एक महीने का हुआ । सूर्य देव ने कहा कि वे कभी विश्राम नहीं लेते लेकिन आज उनके वंश में भगवान का जन्म हुआ है तो उन्होंने छुट्टी लेने का विचार किया और एक दिन एक महीने का हो गया । यह रहस्य किसी को पता नहीं चला । वशिष्ठ जी ने प्रभु का नामकरण किया । उन्होंने कहा कि जो सभी सुखों आश्रय हैं और सारे लोकों को विश्राम देने वाले हैं वे राम हैं । आज प्रभु अपने 6 ऐश्वर्यों को भूल गए और तब उनका प्रथम जन्मोत्सव मनाया गया । राम जी युद्ध जीतकर आए हनुमान जी ने भरत जी को बताया कि प्रभु श्री राम युद्ध में शत्रुओं को जीत कर आ रहे हैं । प्रभु श्री राम 14 वर्ष पहले चले गए थे अब वे युद्ध में सभी शत्रुओं को जीत कर आ रहे हैं । देवता गण उनका सुंदर यश गा रहे हैं और प्रभु श्री राम लक्ष्मण जी, माता सीता और हितकर मित्रों के साथ आ रहे हैं । प्रभु श्री राम इतने कुशल हैं कि शत्रु भी उनका यश गान किया करते हैं । दशरथ जी तपस्या करते हैं कि राम जी ही उनके बेटे बने और रावण भी तपस्या करता है कि राम जी ही उनके शत्रु बनें । श्री राम कभी हारते नहीं इसके पीछे क्या कारण है? क्या प्रभु की ईश्वरता इसका कारण है? नहीं । श्री राम का संकेत है कि अगर मेरे जैसा आचरण करोगे तो तुमको भी वही सफलता मिलेगी जो मुझे मनुष्य के रूप में मिली । राम जी के जैसा ही व्यवहार करना चाहिए । राम जी कभी पराजित नहीं होते हैं क्योंकि वे धर्म पर हैं । धर्म का अर्थ है अपने कर्तव्य का निष्ठा पूर्वक पालन करना । जब राम रावण संग्राम हो रहा था और बाल्मिकी जी कहते हैं कि रावण युद्ध में मरने का निश्चय करके आया था । जो व्यक्ति युद्ध में मरने का निश्चय करके आया है वह कितना भयंकर लड़ेगा । वाल्मिकी जी कहते हैं कि जिस तरह आकाश के समान केवल अकास ही है, समुद्र के समान समुद्र ही है उसी तरह राम जी के समान राम जी ही हैं, रावण के समान रावण ही है और राम रावण युद्ध के समान राम रावण युद्ध ही है और कोई युद्ध ऐसा नहीं हुआ । रावण रथ पर मौजूद था और प्रभु श्री राम जमीन पर थे । रावण के पास अनेक हथियार थे तब विभीषण को भगवान की सफलता पर संदेह हो गया । विभीषण भगवान के प्रेम के कारण उनका ऐश्वर्य भूल गए और प्रभु श्री राम से कहा कि हे राघव आपके पास रथ नहीं है, कवच नहीं है, चरणों में जूते नहीं हैं आप इस बलवान शत्रु को किस तरह जीत सकेंगे । रावण आपके विपक्ष ने है जिसने देवताओं को जीता है । आप किस तरह इस बलवान शत्रु को किस विधि से जीतेंगे । कौन सा रथ होगा, कवच कौनसा, ढाल तलवार बाण इत्यादि क्या होंगे । प्रभु श्री राम ने कहा कि हे मित्र बिना रथ के कोई भी रथी युद्ध जीत नहीं सकता । रावण का रथ टूट जायेगा और उसके सारथी मार जायेंगे लेकिन मेरा रथ ऐसा है जो कभी नहीं टूटेगा । भगवान राम ने कहा कि ही मित्र जिसका धर्म रूप रथ जिसके पास होता है उसे कहीं भी पराजय नहीं मिलती और वो रथ में ले आया हूं । जब में अवतार लेकर आया तो साकेत से ही वो धर्म रूप रथ लेकर आया । रथ हमेशा दिन में ही चला करता है । भगवान राम का जन्म और अयोध्या में प्रवेश जब रघुकुल के महाराज रघु ने कुबेर पर आक्रमण करने का निश्चय किया तो वे शाम के समय रथ में नहीं गए । इसी तरह जिस दिन से भगवान श्री राम कोशल्या जी के गर्भ में आए तभी से संसार में खुसियां आ गईं । CategoriesRamayan TagsRamayan राजा पौंड्रक का क्या हुआ जो अपने आप को भगवान कहता था । बागेश्वर धाम वाले महाराज जी जिनका चर्चा पूरे विश्व में है Leave a Comment Comment Save my name, email, and website in this browser for the next time I comment. बागेश्वर धाम लंका को असल में हनुमान जी ने नहीं जलाया था मोक्ष पाना मुश्किल है या आसान बागेश्वर बाबा से न्यूज़ चैनलों के सीधे सवाल बगेश्वर धाम दिव्य दरबार में पत्रकार लेने आए परीक्षा बागेश्वर धाम वाले महाराज जी जिनका चर्चा पूरे विश्व में है लोकप्रिय लालच से बचने का उपाय श्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए? भगवान श्री राम को क्यों कहा जाता है धीर प्रशांत अच्छे लोगों की मृत्यु जल्दी क्यों हो जाती है ? महाभारत कथा भाग भाग का शीर्षक भाग-1 महाभारत की शुरुआत भाग-2 पांडवों का जन्म भाग-3 कौरवों का जन्म भाग-4 द्रोणाचार्य का गुरुकुल भाग-5 दुर्योधन और कर्ण की मित्रता भाग-6 पांडवों को जलाने का षड्यंत्र भाग-7 पांडव दुर्योधन से छिपकर कहां गए भाग-8 द्रोपदी का विवाह भाग-9 इंद्रप्रस्थ का निर्माण किसने किया भाग-10 जरासंध को किसने मारा भाग-11 शिशुपाल वध, भगवान ने शिशुपाल के 100 पाप क्यों क्षमा किए भाग-12 पांडव और कौरव के बीच चौसर का खेल भाग-13 पांडवों का वनवास जब शकुनी ने कपटपूर्वक चौसर खेला तब भगवान कृष्ण कहां थे भाग-14 अर्जुन और शिव जी का युद्ध, किसकी हुयी जीत भाग-15 अर्जुन की स्वर्ग यात्रा, उर्वशी द्वारा अर्जुन को श्राप भाग-16 राजा नल की कहानी – नल और दमयंती का विवाह कैसे हुआ भाग-17 राजा नल की गरीबी, कलयुग ने ईर्ष्यावश सारा राज्य छीन लिया भाग-18 राजा नल की कथा, नल ने अपना राज्य वापिस केसे जीता भाग-19 युधिस्ठिर गए तीर्थ, नारद जी ने बताया प्रयाग तीर्थ का महत्व भाग-20 अगस्त्य मुनि की कहानी, अगस्त्य मुनि ने समुंद्र केसे सुखाया भाग-21 श्रृंगी ऋषि कौन थे, श्रृंगी ऋषि एक हिरण से पैदा कैसे हुए? भाग-22 युवनाश्व राजा की कहानी जिन्होंने एक पुत्र को जन्म दिया भाग-23 पांडवों की स्वर्ग यात्रा, अर्जुन से मिलने के लिए स्वर्ग गए भाग-24 नहुष कौन थे? नहुष इंद्र थे लेकिन एक श्राप के कारण अजगर बन गए भाग-25 पांडवों ने दुर्योधन को गंधर्वों से क्यों बचाया भाग-26 मुद्गल ऋषि की कहानी जो वरदान मिलने के बाद भी स्वर्ग नहीं गए भाग-27 पांडवों ने दुर्वाशा मुनि और 1000 शिष्यों को भोजन कैसे कराया

भगवान राम का जन्म और अयोध्या में प्रवेश By वनिता कस्निया पंजाब  भगवान राम का अवतार जीवों पर दया करने के लिए था । भगवान भारत भूमि पर 24 अवतार लेते हैं । कृष्ण भगवान का अवतार जीवों पर दया करने के लिए था । इसी तरह बाकी के अवतार भी जीवों का कल्याण करने के लिए थे । लेकिन एक दिन भगवान कल्कि आयेंगे और घोड़े पर सवार होकर सभी पापियों को मार देंगे । भगवान कल्कि गीता का ज्ञान नहीं देंगे, भगवान कल्कि अपने हाथ में तलवार लेकर सभी पापियों को मार देंगे । अब्दुल रहीम खान खाना ने जब रामचरितमानस पढ़ी तब उन्होंने कहा कि कि रामचरितमानस केवल हिंदुओं का ग्रंथ नहीं है वल्कि यह तो संपूर्ण मानव जाति का ग्रंथ है । गोस्वामी जी कहते हैं कि जो रामचरितमानस सरोवर में श्रद्धा पूर्वक स्नान करेंगे वे इस संसार रूपी सूरज की किरणों से नहीं जलेंगे । यह भी पढ़ें – माता कैकई का चरित्र वर्णाश्रम में विश्वास रखने वालों का भी रामचरितमानस से उद्धार होगा और जो विश्वास नहीं रखते हैं उनका भी उद्धार होगा । राम भगवान का जन्म जगत के मंगल के लिए ही हुआ । राम किसी सम्प्रदाय विशेस नहीं हैं । राम का एक अर्थ है जो सभी राष्ट्रों का मंगल ...
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🌹🪴गीता ज्ञान🪴🌹कटप्पा – महान भक्त, जिन्होंने अपनी दोनों आँखें भेंट दे दीं By वनिता कासनियां पंजाब. कटप्पा दोस्तों आप लोगों ने बाहुबली फिल्म जरूर देखी होगी । उसमे बताया गया है कि किस तरह एक राज्य के वफादार कटप्पा ने बाहुबली के मर जाने के बाद भी शाशन का साथ निभाया । दोस्तों क्या आप जानते हैं कि आखिर यह कटप्पा नाम शास्त्रों में कहाँ से लिया गया है । चलिए आपको बताते हैं।गीता ज्ञानआज हम कटप्पा नाम के एक व्यक्ति के बारे में जानेंगे और जानेंगे कि उसने भगवान शिव को मांस का टुकड़ा और अपनी आँखें समर्पित क्यों कीं थी । कटप्पा का जन्म कालहस्ती के पास उदयपुर में एक शिकारी परिवार में हुआ था । वर्तमान के उदयपुर में जिसे उस समय उत्तर कुरु के नाम से जाना जाता था । आंध्र प्रदेश के राजमपेट में कटप्पा एक धनुर्धर एक दिन शिकार करने गया लेकिन जंगल में उन्हें एक मंदिर मिला जिसमें शिवलिंग था ।कटप्पा भगवान शिव के भक्त थे और वह भगवान शिव को कुछ देना चाहते थे परंतु वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि शिव को भेंट कैसे और किस प्रलकार से करें । फिर उन्होंने मांस का एक टुकड़ा भेंट देने का विचार किया जो उन्हें शिकार करने से मिला था और मासूमियत से शिवलिंग पर मांस का टुकड़ा चढ़ा दिया और खुशी से यह विश्वास करते हुए चले गए कि भगवान शिव ने उनकी भेंट स्वीकार कर ली होगी ।मंदिर की देखभाल एक ब्राह्मण करता था जो मंदिर से बहुत दूर रहता था । अगले दिन जब ब्राह्मण वहाँ पहुँचा तो शिवलिंग के बगल में मांस पड़ा हुआ देखकर दंग रह गया । लेकिन फिर उन्होंने यह सोचकर अपने मन को शांत किया कि यह किसी जानवर का काम होगा और उन्होंने मंदिर की सफाई की और अपने दैनिक अनुष्ठान किए और चले गए ।कटप्पा प्रतिदिन श्रद्धा भाव से पूजा पाठ करने लगेगाँव में कटप्पा अपने तरीके से शिवलिंग की पूजा करता था । वह शिकार के बाद शिवलिंग को देखने और उससे बात करने के लिए प्रतिदिन मंदिर जाता था और अपनी श्रद्धा भावना में मांस चढ़ाता था क्योंकि उसे पता नहीं था कि भगवान की पूजा कैसे की जाती है । हर सुबह ब्राह्मण यह सोचकर शिवलिंग की सफाई करते थे कि यह किसी जानवर ने किया होगा ।एक दिन कटप्पा शिकार के बाद फिर से मंदिर गया और शिवलिंग पर कुछ धूल देखी जिसे उसने साफ करने का फैसला किया । लेकिन कटप्पा ने पाया कि उसके पास पानी लाने के लिए कोई बर्तन नहीं है । वह पास में बहती नदी के पास गया और जैसे तैसे एक बर्तन ढूढ़कर पानी भरकर लाया । फिर शिवलिंग के पास वापस चला गया और उसने सारा पानी शिवलिंग के ऊपर डाल दिया ।जब ब्राह्मण वापस मंदिर में आया तो वह शिवलिंग पर मांस और पानी देखकर घृणा से भर गया । उसे एहसास हुआ कि कोई भी जानवर ऐसा नहीं कर सकता है और केवल इंसान ही ऐसा कर सकता है । ब्राह्मण की आँखों में आंसू भर आए और उसने भगवान शिव से पूछा कि आप अपने लिए ऐसा अपमान कैसे सहन कर सकते हैं ।ईश्वर के प्रति सच्चा प्यार और भक्तिभगवान शिव ने अपने भक्त ब्राह्मण को उत्तर दिया कि जिसे तुम अपमान समझते हो, मेरे लिए दूसरे भक्त की ओर से भेंट है । मैं उनकी भक्ति से बंधा हूँ और जो कुछ भी वह प्रदान करता है उसे स्वीकार करता हूँ । भगवान शिव ने ब्राह्मण से कहा कि यदि आप उनकी भक्ति को देखना चाहते हैं तो पास में ही कहीं छिप जाएँ क्योंकि वे आने वाले हैं । ब्राह्मण झाड़ी के पास छिप गए ।कटप्पा हमेशा की तरह मांस लेकर पहुँचा तो यह देखकर हैरान रह गया कि शिव हमेशा की तरह उसकी भेंट स्वीकार नहीं कर रहे थे । कटप्पा ने सोचा कि उसने ऐसा क्या किया है कि शिव उसकी भेंट स्वीकार नहीं कर रहे हैं । उसने शिवलिंग को करीब से देखा और पाया कि शिवलिंग की दाहिनी आँख से कुछ रिस रहा था । कटप्पा ने शिवलिंग पर कुछ जड़ी बूटियां डाल दीं ताकि वो ठीक हो सकें लेकिन कटप्पा रक्त को रोकने में असफल रहे ।अंत में कटप्पा ने अपनी आँखें देने का फैसला किया । उसने चाकू निकाल कर अपनी दाहिनी आँख को निकालकर शिवलिंग पर रख दिया । खून रुक गया और कटप्पा ने राहत की सांस ली । लेकिन तभी उसने देखा कि अब बाई आँख से खून आने लगा है । उसने तुरंत अपनी दूसरी आँख निकालने के लिए चाकू निकाला । उसे लगा कि दोनों आँखों के बिना वह नहीं देख पाएगा कि उसे आँख कहाँ रखनी है ।अपनी भक्ति भावना में उसने शिव पर पैर भी रख दियाउसने अपना एक पैर शिवलिंग की आँख पर रखा और अपनी दूसरी आँख भी निकाल कर भगवान शिव को अर्पित कर दी । भगवान शिव के प्रति कटप्पा की अपार भक्ति देखकर ब्राह्मण हैरान रह गए थे । कटप्पा की भक्ति देखकर भगवान शिव प्रकट हुए और उसकी दृष्टि लौटा दी । कटप्पा ने भगवान शिव को प्रणाम किया और भगवान शिव को देख कर उनकी आँखों में खुशी के आंसू आ गए ।एक आदिवासी को संत की उपाधि प्रदान करते हुए भगवान ने दोहराया कि यह प्रभु के लिए सच्चा प्यार और भक्ति है ना कि हमारे द्वारा की जाने वाली प्रार्थना और अनुष्ठान, जो प्रभु को अपने पूरे हृदय से प्रेम करते हैं वही उसे प्राप्त करने की आशा कर सकते हैं ।तो दोस्तो आपको यह कहानी कैसी लगी आप कमेंट करके हमें अवश्य बताएं । दोस्तों क्या आप जानते हैं कि भारत देश में न जाने कितने लोग इस तरह के सच्चे श्रद्धालुओं का मजाक उड़ाते हैं । हमाराआपसे अनुरोध है इस पोस्ट को ज्यादा से ज्यादा शेयर करें । दोस्तों हमें श्रद्धालुओं की भावनाओं को समझना चाहिए न कि उनका मजाक उड़ाना चाहिए । हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि इस दुनिया में अश्रद्धालुओं को भी सम्मान मिलना चाहिए लेकिन कुछ थोड़े बहुत श्रद्धालुओं को उनका अधिकार मिलना चाहिए ।इसी तरह की धार्मिक और मजेदार पोस्ट को पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाट्सप्प ग्रुप ज्वाइन अवश्य करें । ग्रुप ज्वाइन कररने के लिए यहाँ क्लिक करें – Join Whatsapp । आपका बहुत बहुत शुक्रिया।

  🌹🪴  गीता ज्ञान 🪴🌹 कटप्पा – महान भक्त, जिन्होंने अपनी दोनों आँखें भेंट दे दीं   By वनिता कासनियां पंजाब. कटप्पा दोस्तों आप लोगों ने बाहुबली फिल्म जरूर देखी होगी । उसमे बताया गया है कि किस तरह एक राज्य के वफादार कटप्पा ने बाहुबली के मर जाने के बाद भी शाशन का साथ निभाया । दोस्तों क्या आप जानते हैं कि आखिर यह कटप्पा नाम शास्त्रों में कहाँ से लिया गया है । चलिए आपको बताते हैं। गीता ज्ञान आज हम कटप्पा नाम के एक व्यक्ति के बारे में जानेंगे और जानेंगे कि उसने भगवान शिव को मांस का टुकड़ा और अपनी आँखें समर्पित क्यों कीं थी । कटप्पा का जन्म कालहस्ती के पास उदयपुर में एक शिकारी परिवार में हुआ था । वर्तमान के उदयपुर में जिसे उस समय  उत्तर कुरु  के नाम से जाना जाता था । आंध्र प्रदेश के राजमपेट में कटप्पा एक धनुर्धर एक दिन शिकार करने गया लेकिन जंगल में उन्हें एक मंदिर मिला जिसमें शिवलिंग था । कटप्पा भगवान शिव के भक्त थे और वह भगवान शिव को कुछ देना चाहते थे परंतु वह यह नहीं समझ पा रहे थे कि शिव को भेंट कैसे और किस प्रलकार से करें । फिर उन्होंने मांस का एक टुकड़ा...

🌹🪴गीता ज्ञान🪴🌹मासिक धर्म का कारण है इंद्र के द्वारा किया गया यह पाप By बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम मसिक धर्म मासिक धर्म को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं । जहाँ वैज्ञानिक इसे एक जैविक प्रक्रिया बताते हैं वहीँ इसे हमारी प्रचलित मान्यताओं में अपवित्र कहा गया है । इस दौरान महिलाओं का मंदिरों में प्रवेश निषेध है । पवित्र कामों को करने के लिए महिलाओं को मासिक धर्म के वक्त मनाही रहती है । यह विषय हमेसा से ही चर्चा का विषय रहा है और जमाने भर के लेखकों नेऔर दार्शनिकों ने इस पर बहुत कुछ कहा है । हमारा आज का विषय मासिक धर्म से जुड़ी मान्यताओं को सही या गलत ठहरना नहीं है । हम आज आपको बताएँगे कि इस विषय से जुड़ी हमारे धर्म शास्त्रों में कौन सी कहानी बताई गयी है ।इंद्र के द्वारा किया गया पापइंद्र के द्वारा किये गए पाप की सजा सभी महिलाओं को मिली और तब से उन्हें मासिक धर्म की पीड़ा को सहना पड़ता है । हमारे धर्म शास्त्रों में कई तरह के पाप कर्मों की बात की गयी है जिनकी सजा करने वाले को नहीं वल्कि किसी दूसरे व्यक्ति को मिल जाया करती थी । अतीत में किये गए इसी तरह के पापों में से एक है इंद्र के द्वारा की गयी ब्रम्हहत्या ।एक बार की बात है देवताओं के गुरु वृहस्पति उनपर नाराज हो गए । इस मौके का फायदा उठाकर असुरों ने स्वर्ग पर हमला कर दिया । गुरु का संरक्षण ना होने के कारण सारे देवता कमजोर पड़ गए और युद्ध हार गए । असुरों ने स्वर्ग छीन लिया और देवता बेघर होकर यहाँ वहां भटकने लगे । स्वर्ग के राजा जब बेघर होकर भाग रहे थे तो उनकी मदद किसी ने नहीं की । ब्रम्हा जी ने उन्हें सलाह दी कि देवराज का यह हाल एक महात्मा का तिरस्कार करने की वजह से हुआ है । अगर देवताओं पर बृहस्पति की कृपा होती हो ये नौबत कभी ना आती । ।ब्रम्हा जी ने कहा की देवराज इंद्र को गुरु कृपा से ही स्वर्ग वापस मिल सकता है इसलिए उन्हें किसी महात्मा की शरण में जाना चाहिए । इंद्र ने वैसा ही किया और एक ज्ञानी महात्मा को प्रसन्न करने के लिए रोज उनकी सेवा करने लगे । महात्मा के लिए यज्ञ की सामग्री लेकर आते, हाथ पैर दबाते और विनम्र भाव से आज्ञा पालन करते । सब कुछ ठीक चल रहा था जब तक इंद्र ने उन महात्मा की ह्त्या नहीं कर डाली । दरअसल इंद्र को पता चला कि वो महात्मा एक असुर के पुत्र थे और यज्ञ में दी गयी सारी आहूतियां असुरों तक पंहुचा रहे थे ।इंद्र ने अपने पाप का फल स्त्रियों को दे दियापहले से ही मुसीबत में पड़े इंद्र पर अब एक और मुसीबत आ गयी क्यूंकि ब्रम्हत्या का पाप भी अब उनपर लगने वाला था । भागवान विष्णु ने इंद्र को इस पाप से बचने की सलाह दी । भागवान के कहे अनुसार इंद्र ने अपने पाप का एक चौताई हिस्सा पेड़ों को, एक चौथाई हिस्सा भूमि को, एक चौथाई हिस्सा महिलाओं को और एक चौथाई हिस्सा जल को दे दिया । इस तरह इंद्र को पाप से मुक्ति मिल गयी लेकिन पाप के एवज में इंद्र ने चारों पात्रों को एक-एक वरदान भी दिया ।इंद्र ने पेड़ों को वरदान दिया कि पेड़ एक बार कटने के बाद अपने आप को पुनः जीवित कर सकेंगे बदले में पेड़ में से गोंद निकलना शुरू हो गया । इसी तरह स्त्री को इंद्र ने वरदान दिया कि पुरुषों के मुकाबले वे चार गुना ज्यादा काम का आनंद ले सकेंगी । इसी तरह जल को इंद्र ने वरदान दिया कि आज से जल में पवित्र करने की शक्ति पायी जाएगी । भूमि को वरदान दिया कि भूमि के गड्ढे अपने आप भर जायेमसिक धर्म का वैज्ञानिक कारणवैज्ञानिकों के मत अनुसार मासिक धर्म एक साधारण प्रक्रिया है । यह स्त्री के सरीर में बने अत्यधिक मासपेशियों से उन्हें निजात दिलाता है । दरअसल स्त्री का शरीर हार्मोन में हुए बदलाव की वजह से नयी मासपेशियों को बनाता है । जब इनका इस्तेमाल नहीं होता तो शरीर इनसे छुटकारा पा लेता है और दोबारा से नयी मासपेशियां बनाना शुरू कर देता है । इतना ही साधारण है मासिक धर्म वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से ।पुरुषों को मसिक धर्म क्यों नहीं होता?पुरुषों को इंद्र ने अपने पाप का हिस्सा नहीं दिया था इसलिए उन्हें मासिक धर्म नहीं होता । वैज्ञानिक द्रष्टिकोण से पुरुषों का प्रजनन तंत्र महिलाओं के प्रजनन तंत्र से अलग काम करता है । अब क्यूंकि पुरुष बच्चों को जन्म नहीं देते इसलिए उनका शरीर उसके लिए उतनी मासपेशियां नहीं बनाता ।मासिक धर्म के दौरान मंदिरों में प्रवेश पर प्रतिबंध क्यों?मंदिर में प्रवेश पवित्र व्यक्ति ही कर सकता है । पवित्र मतलब जो शरीर से पवित्र हो । प्राचीन काल में इस नियम का दुरूपयोग किया जाता रहा और छोटी जाती के लोगों को मंदिर में प्रवेश करने से रोका जाता रहा । मासिक धर्म के दौरान महिलाएं शरीर से अपवित्र होती हैं इसलिए उस वक्त उनका मंदिर में प्रवेश निषेध है ।माहवारी से हुयी बीमारियों से बचने के उपायमाहवारी यानि मासिक धर्म के वक्त गंदा कपड़ा इस्तेमाल करने से बचें । इस द्वारान अत्यधिक मेहनती काम करने से बचे ।असामान्य मासिक धर्म से कैसे बचें?मानसिक तनाव से बचें । ऐसा होने पर कुछ दिन के लिए व्ययायाम सम्बन्धी गतिविधियों पर रोक लगाएं । प्राणायाम कर सकते हैं इससे तनाव जायेगा ।क्या जानवरों को मासिक धर्म होता है?वैज्ञानिकों के अनुसार जानवरों को मासिक धर्म नहीं होता, जानवरों में यह काफी काम मात्रा में होता है जिसे वैज्ञानिक भाषा में estrous cycle कहते हैं ।क्या मासिक धर्म को रोका जा सकता है?इस प्रक्रिया को रोका नहीं जा सकता क्यूंकि यह बिलकुल नैसर्गिक है । महिलाओं का शरीर हर महीने बच्चा पैदा करने के लिए अपने आप को तैयार करता है । शरीर को यह पता नहीं होता कि किस महीने स्त्री गर्भवती होगी इसलिए स्त्री का शरीर अपने आप को इस काम के लिए हर महीने तैयार करता रहता है ।दोस्तों कहानी किसी लगी व्हाट्सप्प ग्रुप ज्वाइन करके जरूर बताएं । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहाँ क्लिक करें – Join Whatsapp । अंत तक बने रखने के लिए आपका शुक्रिया

🌹🪴गीता ज्ञान🪴🌹 मासिक धर्म का कारण है इंद्र के द्वारा किया गया यह पाप   By  बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम मसिक धर्म  मासिक धर्म को लेकर कई मान्यताएं प्रचलित हैं । जहाँ वैज्ञानिक इसे एक जैविक प्रक्रिया बताते हैं वहीँ इसे हमारी प्रचलित मान्यताओं में अपवित्र कहा गया है । इस दौरान महिलाओं का मंदिरों में प्रवेश निषेध है । पवित्र कामों को करने के लिए महिलाओं को मासिक धर्म के वक्त मनाही रहती है । यह विषय हमेसा से ही चर्चा का विषय रहा है और जमाने भर के लेखकों नेऔर दार्शनिकों ने इस पर बहुत कुछ कहा है । हमारा आज का विषय मासिक धर्म से जुड़ी मान्यताओं को सही या गलत ठहरना नहीं है । हम आज आपको बताएँगे कि इस विषय से जुड़ी हमारे धर्म शास्त्रों में कौन सी कहानी बताई गयी है । इंद्र के द्वारा किया गया पाप इंद्र के द्वारा किये गए पाप की सजा सभी महिलाओं को मिली और तब से उन्हें मासिक धर्म की पीड़ा को सहना पड़ता है । हमारे धर्म शास्त्रों में कई तरह के पाप कर्मों की बात की गयी है जिनकी सजा करने वाले को नहीं वल्कि किसी दूसरे व्यक्ति को मिल जाया करती थी । अतीत में किये गए इसी तरह के पापों...
चमक जाएगी आपकी किस्मत, अगर भोजन करते समय रखा इन बातों का ध्यानBy वनिता कासनियां पंजाब Best Direction for Eating Food: जीवन में कई घटनाएं ऐसी होती हैं, जिनको हम नजरअंदाज कर देते हैं. हालांकि, ये छोटी-छोटी बातें ज्योतिष शास्त्र के लिहाज से अहम हो सकती हैं. इन पर अगर समय रहते ध्यान दे दिया जाए तो किस्मत बदल सकती है. आज खाना खाने के दौरान होने वाली कुछ बातों के बारे में जानकारी देंगे. जिन पर अगर गौर कर सुधार लिया जाए तो घर में खुशहाली आ सकती है.  1/5 वास्तु शास्त्र के अनुसार, भोजन करते समय कुछ बातों को विशेष ध्यान रखना चाहिए. ये बातें सेहत के लिहाज से तो बढ़िया रहती हैं, साथ ही इसके ज्योतिष मायने भी होते हैं. भोजन करने के दौरान वाली ये बातें काफी आसान हैं. इन बातों पर अगर समय रहते अमल कर लिया जाए तो किस्मत साथ देने लगती हैं. 2/5 दक्षिण दिशा की तरफ कभी मुंह करने भोजन नहीं करना चाहिए. इस बात को न केवल घर में, बल्कि रेस्टोरेंट और होटल में भी अमल में लाना चाहिए. इस दिशा में मुंह करके खाना खाने से नकारात्मक विचार आते हैं.  3/5 खाना खाते समय कई लोगों को पानी पीने की आदत होती है. ऐसे में...

ईश्वर को न मानने में कौन कौन सी हानियां हैं? By वनिता कासनियां पंजाब? ईश्वरजैसे ही चोर और लुटेरे बढ़ते हैं, वैसे ही आम नागरिक सतर्क हो जाते हैं। इसी तरह, नास्तिकों के उत्पीड़न के बाद हमारे लोगों की आस्था और ईश्वर के प्रति भावनाएं भी बढ़ती हैं । 200 साल का ब्रिटिश शासन और 500 साल का मुगल साम्राज्य हमारे देश से विश्वासियों का सफाया करने में विफल रहा । मुगलों ने नालंदा पर हमला किया और नौ मिलियन पांडुलिपियों को जला दिया गया । इतिहास में ऐसे कई हमले हुए हैं, लेकिन भारतीयों का ईश्वर पर से विश्वास नहीं टूटा ।संसार के सारे प्रयास अहंकार की तृप्ति की ओर निर्देशित हैं । दुनिया में मां-बच्चे का रिश्ता निस्वार्थ होता है, लेकिन मां-बाप को भी अपने बच्चों से उम्मीदें होती हैं । हमें बताओ, भगवान में हमारी आस्था का स्वार्थ क्या है? भगवान में विश्वास न करने में क्या बुराई है?ईश्वर में विश्वास न करने का नकारात्मक पक्ष?नास्तिक हो या अज्ञेय, हर कोई बीमारी का शिकार है । अंतर यह है कि विश्वासी परहेज करने में सक्षम हैं क्योंकि उन्होंने पवित्रशास्त्र के निषेधों का पालन किया है । जब वे बीमार होते हैं, तो वे आसानी से डॉक्टर द्वारा निर्धारित आहार से संबंधित परहेज कर सकते हैं। लेकिन एक नास्तिक के लिए ऐसा करना मुश्किल है क्योंकि वह स्वतंत्र होने का आदी है ।आस्तिक और पूजा पाठ करने वाले व्यक्ति स्वाभाव से सांत होते हैं । पूजा पाठ में लगे ऐसे व्यक्तियों को गुस्सा न के बराबर ही आता है । जबकि नास्तिक व्यक्ति का मिजाज बड़ा तेज होता है । अपने इसी स्वभाव के कारण ऐसे व्यक्ति जल्द ही लड़ाई भिड़ाई की मुसीबत में पड़ जाते हैं । इनका गुस्सा जल्द ही बेकाबू हो जाता है और ये अपने से बड़ों के का अपमान करने से खुद को रोक नहीं पाते और समाज में अपना मान-सम्मान खो देते हैं ।जो लोग ईश्वर पर विश्वास करते हैं और आस्तिक होते हैं उनका स्वभाव शांत होता है । ऐसे उपासकों को विरला ही कभी क्रोध आता है । जबकि नास्तिक बहुत भावुक होते हैं । इस स्वभाव के कारण ऐसा जातक युद्ध में शीघ्र ही संकट में पड़ सकता है । उनका गुस्सा जल्द ही बेकाबू हो जाता है, और वे अपने बड़ों को ठेस पहुँचाने से पीछे नहीं हटते और समाज में अपना मान सम्मान खो देते हैं ।तीसरा नुकसान खाने-पीने का है। अधिकांश विश्वासी अपना भोजन भगवान को अर्पित करने के बाद ही खा सकते हैं। अब पिज्जा, मोमोज देवताओं को नहीं चढ़ाए जा सकते, इसलिए इस प्रकार के लोग देवताओं को चढ़ाकर केवल तवे पर पका हुआ शुद्ध भोजन ही खा सकते हैं। ऐसा भोजन करने से श्रद्धालु अनेक रोगों के शिकार से मुक्त हो जाते हैं। और नास्तिकों के पास इन हानिकारक खाद्य पदार्थों का विरोध करने का कोई कारण नहीं है इसलिए इनके बीमार होने की संभावनाएं बड़ जाती हैं ।भगवान पर अविश्वास बढ़ाता है अपराधनास्तिक नर्क और स्वर्ग में विश्वास नहीं करते। ऐसे लोग झूठ, व्यभिचार और चोरी जैसे बुरे गुणों को नहीं छोड़ते क्योंकि उन्हें नरक में जाने का डर नहीं होता है। अगर समाज में ऐसे बहुत से लोग होंगे, तो पूरा समाज अराजकता में शासन करेगा और कोई भी शांति से नहीं रहेगा। सरकार इन लोगों से बहुत नाराज़ रहती है, लेकिन उन्हें रोक नहीं सकती क्योंकि ऐसा करने वालों को जेल जाने का भी डर नहीं रहता।यदि सारे लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं, तो समाज में भयानक बुराई होगी । कुछ पैसे के लिए लोग हत्या, चोरी और झूठ बोलना शुरू कर देंगे । यह सब आज कुछ हद तक हो रहा है, लेकिन यह इतना घातक नहीं है कि कोई घर से बाहर ही न निकल पाए । जहां तक ​​भारत की बात है तो यहाँ आस्तिकों की बड़ी संख्या के कारण चोरी, हिंसा और भ्रष्टाचार के काम ही मामले देखने को मिलते हैं । वहीं अगर हम एक ऐसे देश की बात करें जहां के लोग नास्तिक हैं तो यहां चोरी, डकैती और यहां तक ​​कि खून-खराबा तक आम बात है । ऐसे नास्तिक देश में पुलिस भी डर के साये में रहती है, आम लोगों की तो बात ही क्या।ईश्वर के होने के प्रमाणज्योतिषीय विद्वानों ने पहले बुध, बृहस्पति और शुक्र जैसे ग्रहों के लिए तिथियों के साथ पचास साल पहले ही कैलेंडर तैयार किए थे । इस प्रत्यक्ष प्रमाण से अवश्य ही कोई सर्वज्ञ जीव रहा होगा जो समय-समय पर इन ग्रहों को गतिमान करता है । अगर कोई कहता है कि प्रकृति इन ग्रहों में हेरफेर कर रही है, तो यह गलत है क्योंकि यह प्रकृति भी उन ग्रहों की तरह निष्क्रिय है । यदि कोई इसे प्राकृतिक चेतना कहता है तो अपने शब्दों में हम इसे ही सर्वशक्तिमान ईश्वर कहते हैं ।एक गाय खाती है घास, इसके नतीजतन गाय हमें दूध देती है । गाय को पालने में बहुत मेहनत लगती है, और बछड़े के जन्म के कुछ महीने बाद तक ही गाय दूध दूध दिया करती है। गाय जहां इस ईश्वरीय क्षमता से दूध बनाती है, वहीं बैल भी घास खाता है, लेकिन दूध क्यों नहीं देता? यदि आप कहते हैं कि इन सभी व्यवस्थाओं को प्राकृतिक चेतना द्वारा व्यवस्थित किया जाता है, तो हम इस चेतना को सर्वोच्च ईश्वर कहते हैं ।Vnita kasnia punjabआपको बता दें कि वैज्ञानिकों ने एक भी ऐसी मशीन नहीं बनाई है जो घास से दूध बना सके । अगर ऐसा होता, तो दूध, जो आज मिल पाना मुश्किल है, प्लास्टिक की कीमत पर सड़क पर बेचा जाता । दोस्तो आज की पोस्ट के लिए बस इतना ही । आप चाहें तो अगले लेख के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । ग्रुप में शामिल होने के लिए यहां क्लिक करें – Join Whatsapp । दोस्तो कृपया इस लेख को किसी भी व्हाट्सएप ग्रुप में शेयर जरूर करें । मित्रों, आजकल लोगों के पास न तो क्षेत्रीय ज्ञान है और न ही शास्त्रीय । क्या आप जानते हैं कि आपका यह योगदान किसी की जिंदगी भी बदल सकता है । फिर मिलेंगे एक और नयी पोस्ट के साथ जिसकी जानकारी आपको व्हाट्सप्प ग्रुप में दी जाएगी । अंत तक बने रहने के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद !

ईश्वर को न मानने में कौन कौन सी हानियां हैं?   By वनिता कासनियां पंजाब? ईश्वर जैसे ही चोर और लुटेरे बढ़ते हैं, वैसे ही आम नागरिक सतर्क हो जाते हैं। इसी तरह, नास्तिकों के उत्पीड़न के बाद हमारे लोगों की आस्था और ईश्वर के प्रति भावनाएं भी बढ़ती हैं । 200 साल का ब्रिटिश शासन और 500 साल का मुगल साम्राज्य हमारे देश से विश्वासियों का सफाया करने में विफल रहा । मुगलों ने नालंदा पर हमला किया और नौ मिलियन पांडुलिपियों को जला दिया गया । इतिहास में ऐसे कई हमले हुए हैं, लेकिन भारतीयों का ईश्वर पर से विश्वास नहीं टूटा । संसार के सारे प्रयास अहंकार की तृप्ति की ओर निर्देशित हैं । दुनिया में मां-बच्चे का रिश्ता निस्वार्थ होता है, लेकिन मां-बाप को भी अपने बच्चों से उम्मीदें होती हैं । हमें बताओ, भगवान में हमारी आस्था का स्वार्थ क्या है? भगवान में विश्वास न करने में क्या बुराई है? ईश्वर में विश्वास न करने का नकारात्मक पक्ष? नास्तिक हो या अज्ञेय, हर कोई बीमारी का शिकार है । अंतर यह है कि विश्वासी परहेज करने में सक्षम हैं क्योंकि उन्होंने पवित्रशास्त्र के निषेधों का पालन किया है । जब वे बीम...

गणेश जी को सबसे पहले क्यों पूजा जाता है? By वनिता कासनियां पंजाबगणेश जी की कहानीगणेश जी की पूजा हर किसी बड़े काम के पहले की जाती है । चाहे दुकान का उद्द्घाटन हो, नामकरण संस्कार हो या गर्भाधान संस्कार सबसे पहले गणेश जी को ही पूजा जाता है । हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं लेकिन गणेश जी को ही सबसे पहले क्यों पूजा जाता है ? इससे सम्बंधित क्या पौराणिक कथा है आपको बताएँगे आज, बने रहिये अंत तक हमारे साथ ।गणेश जी को सभी देवी देवताओं में प्रधान क्यों माना जाता है?आपको बताते हैं यह पौराणिक कथा, एक बार की बात है 33 करोड़ देवी देवताओं में प्रतिस्पर्धा हुयी जिसमे जीतने वाले देव को किसी भी शुभ काम के पहले पूजा जायेगा । प्रतिस्पर्धा के अनुसार जो भी देवी देवता ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाकर सबसे पहले वापिस आएगा उसे ही अधिपति माना जायेगा । देवताओं के लिए ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाना कोई कठिन काम नहीं है ।परन्तु इस प्रतिस्पर्धा में एक मोड़ था, इस दौड़ में हिस्सा ले रहे हर देवी देवता की भेंट नारद जी से हो जाती थी । अब नारद मुनि को देखकर उनको प्रणाम करना ही पड़ता था । नारद जी परम वैष्णव हैं इसलिए वो प्रणाम करने वाले सभी देवी देवताओं को हरि कथा सुनाते थे । हरि कथा सुनने वाले देवी देवता दौड़ में जीत नहीं सकते थे इसलिए कुछ देवी देवता नारद जी को प्रणाम किये बिना ही निकल जाते थे।गणेश जी को जब इस दौड़ का पता चला तो उन्होंने भी अपने पिता से इसमें भाग लेने के बारे में पूछा और उनको इस दौड़ में हिस्सा लेने की अनुमति मिल गयी । गणेश जी के वाहन थे चूहा जबकि अन्य देवी देवताओं के वाहन गति में तेज और हवा में उड़ने वाले थे । अन्य देवी देवता नारद जी को प्रणाम किये बिना ही आगे बड़ जाते थे परन्तु गजानन ने नारद जी को प्रणाम किया और उनसे हरि कथा भी सुनी । नारद जी ने चेतावनी दी कि अगर वो हरि कथा सुनेंगे तो प्रतिस्पर्धा जीत नहीं पाएंगे लेकिन गजानन ने हरि कथा सुनने का फैसला किया ।नारद जी ने बताया एक रहस्यहरि कथा खत्म हो जाने के बाद नारद जी ने पूछा यह दौड़ किस लिए? तब गणेश जी ने बताया कि सबसे पहले ब्रम्हांड की तीन चक्कर लगाने वाले देव को देवताओं में अधिपति का खिताब मिलेगा और उसे हर किसी सुभ काम में सबसे पहले पूजा जायेगा । तब नारद जी ने गजानन को ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में बताया । नारद जी ने कहा कि ब्रम्हांड के स्रोत है भगवान और यदि गणेश जी भगवान के तीन चकार लगा लें तो वे इस प्रतिस्पर्धा को जीत जायेंगे ।नारद जी ने बताया कि भगवान के नाम में और भगवान में कोई अंतर नहीं है । गजानन ने ऐसा ही किया और राम नाम अपनी सूंढ़ में लिखकर उसके तीन चक्कर लगा लिए । इस तरह करने के बाद नारद जी ने आशीर्वाद दिया कि गणेश दौड़ में जीत चुके हैं । गजानन ने आशीर्वाद लेकर दौड़ना शुरू कर दिया । जब उन्होंने पीछे देखा तो पता चला कि वे सभी देवी देवताओं के आगे थे । कुछ समय में गणेश जी यह प्रतिस्पर्धा जीत गए और गणेश जी को अधिपति कहा गया ।जब आप जय गणेश देवा आरती गाते हैं तो उसमे गणेश जी को अन्य कई नामों से बुलाते हैं । आपको यह जानकार हैरानी होगी कि गजानन के नामों के पीछे भी पौराणिक कथाएं मौजूद हैं । चलिए आपको बताते हैं कि गणेश जी को एकदन्त, गजानन या मंगल मूर्ती क्यों कहते हैं?गणेश जी के अन्य नामअन्य नामों से भी गणेश जी को बुलाया जाता है जैसे कि गणपति अर्थात जो शिव जी के गणों में सबसे प्रधान हैं । इनका एक नाम है गजानन यानि इनके मस्तक पर हाथी का सर लगा हुआ है । एक नाम है विनायक जिसका अर्थ है ये ज्ञान के भण्डार हैं । एक नाम है एकदन्त यानि इनके पास एक ही दांत है जो बड़ा विशेष है । आपको पता होगा गजानन ने महाभारत लिखने में भी योगदान दिया है । उन्होंने अपने इसी एक दांत से महाभारत ग्रन्थ को लिखा था ।एकदन्त का एक दांत किसने तोड़ा?एक बार की बात है परशुराम जी शिव जी से मिलने गए । गणेश जी ने कहा कि पिता जी अभी विश्राम कर रहे हैं इसलिए आप प्रवेश नहीं कर सकते । यदि आप परशुराम जी के यश से तो भली भांति परिचित नहीं हैं तो यह जान लीजिये कि उन्होंने पृथ्वी को 21 बार छत्रियों से वीहीन कर दिया था । परशुराम जी को रोकने वाला तीनो लोकों में कोई नहीं था जब वो छात्रिओं को मारने निकलते थे । गजानन की आयु उस समय काफी कम थी । एक बालक के द्वारा परशुराम जी का रोका जाना मूर्खता था और इसलिए परशुराम ने गणेश जी का एक दांत तोड़ दिया और वे एकदन्त कहलाये ।यह भी पड़ें – बेटी को घर की लक्ष्मी क्यों कहा जाता है?गणेश जी का सिर किसने काटा?गणेश जी आज्ञा पालन में निपुण थे । एक बार की बात है कि गणेश जी ने अपनी माँ की आज्ञा का पालन करने के चक्कर में शिव जी से ही युद्ध कर लिया । दरसल गणेश जी को माता पारवती ने आदेश दिया था कि किसी को भी अंदर मत आने देना । जब शिव जी ने अंदर जाने की कोशिस की तो बालक गणेश ने उन्हें रोका । शिव जी ने बताया कि वो गणेश जी के पिता हैं और इसलिए उन्हें अंदर जाने से नहीं रोका जाना चाहिए । गणेश जी नहीं माने और शिव ने उनका सर काट दिया । यह देखकर माँ पारवती विलाप करने लगीं और शिव जी ने एक हाथी का सिर गणेश जी को लगवा दिया । तभी से उनको गजानन कहा जाता है ।मित्रो उम्मीद करते हैं आजकी कहानी आपको पसंद आयी होगी । इसे शेयर करें और हमारा व्हाट्सप्प ग्रुप ज्वाइन करें । ग्रुप ज्वाइन करने के लिए यहाँ क्लिक करें – Join Whatsapp । फिर मिलते हैं एक और पौराणिक कहानी के साथ ।

गणेश जी को सबसे पहले क्यों पूजा जाता है?   By  वनिता कासनियां पंजाब गणेश जी की कहानी गणेश जी की पूजा हर किसी बड़े काम के पहले की जाती है । चाहे दुकान का उद्द्घाटन हो, नामकरण संस्कार हो या गर्भाधान संस्कार सबसे पहले गणेश जी को ही पूजा जाता है । हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता हैं लेकिन गणेश जी को ही सबसे पहले क्यों पूजा जाता है ? इससे सम्बंधित क्या पौराणिक कथा है आपको बताएँगे आज, बने रहिये अंत तक हमारे साथ । गणेश जी को सभी देवी देवताओं में प्रधान क्यों माना जाता है? आपको बताते हैं यह पौराणिक कथा, एक बार की बात है 33 करोड़ देवी देवताओं में प्रतिस्पर्धा हुयी जिसमे जीतने वाले देव को किसी भी शुभ काम के पहले पूजा जायेगा । प्रतिस्पर्धा के अनुसार जो भी देवी देवता ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाकर सबसे पहले वापिस आएगा उसे ही अधिपति माना जायेगा । देवताओं के लिए ब्रम्हांड के तीन चक्कर लगाना कोई कठिन काम नहीं है । परन्तु इस प्रतिस्पर्धा में एक मोड़ था, इस दौड़ में हिस्सा ले रहे हर देवी देवता की भेंट नारद जी से हो जाती थी । अब  नारद मुनि  को देखकर उनको प्रणाम करना ही पड़ता थ...