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🚩🪴गीता ज्ञान🪴🚩गीता में छिपा है जीवन जीने का सार, जानिए उसके कुछ अंश वनिता कासनियां पंजाब द्वारा🚩🪴गीता ज्ञान🪴🚩गीता के उपदेश (प्रतीकात्मक तस्वीर)1 of 6गीता के उपदेश (गुगले प्रतीकात्मक तस्वीर)2 of 6जब अर्जुन युद्ध भूमि में जाते हैं तो अपने सामने पितामह और सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो जाते हैं। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें सही ज्ञान देते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे पार्थ ये युद्ध धर्म और अधर्म के मध्य है । इसलिए अपने शस्त्र उठाओ और धर्म की स्थापना करो। भगवान श्री कृष्ण धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। मनुष्य को भी धर्म का पालन करना चाहिए।2 of 6प्रतीकात्मक तस्वीर गुगल जब अर्जुन युद्ध भूमि में जाते हैं तो अपने सामने पितामह और सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो जाते हैं। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें सही ज्ञान देते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे पार्थ ये युद्ध धर्म और अधर्म के मध्य है । इसलिए अपने शस्त्र उठाओ और धर्म की स्थापना करो। भगवान श्री कृष्ण धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। मनुष्य को भी धर्म का पालन करना चाहिए।गीता के उपदेश (प्रतीकात्मक तस्वीर)3 of 6महाभारत - फोटो : गीता में कहा गया है कि क्रोध से भ्रम उत्पन्न होता है जिससे बुद्धि व्यग्र हो जाती है। भ्रमित मनुष्य अपने मार्ग से भटक जाता है। तब सारे तर्कों का नाश हो जाता है, जिसके कारण मनुष्य का पतन हो जाता है। इसलिए हमें अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए।गीता के उपदेश (प्रतीकात्मक तस्वीर)4 of 6(प्रतीकात्मक तस्वीर) - फोटो : गुगलगीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि मनुष्य को उसके द्वारा किए गए कर्मों के अनुसार ही फल प्राप्त होता है। इसलिए मनुष्य को सदैव सत्कर्म करने चाहिए। गीता में कही गई इन बातों को प्रत्येक व्यक्ति को अपने जीवन में मानना चाहिए। गीता के उपदेश (प्रतीकात्मक तस्वीर)5 of 6(प्रतीकात्मक तस्वीर) - फोटो : गुगलभगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि आत्म मंथन करके स्वयं को पहचानो क्योंकि जब स्वयं को पहचानोगे तभी क्षमता का आंकलन कर पाओगे। ज्ञान रूपी तलवार से अज्ञान को काट कर अलग कर देना चाहिए। जब व्यक्ति अपनी क्षमता का आंकलन कर लेता है तभी उसका उद्धार हो पाता है।गीता के उपदेश (प्रतीकात्मक तस्वीर)6 of 6प्रतीकात्मक तस्वीर गुगलभगवान श्री कृष्ण कहते हैं कि मृत्यु एक अटल सत्य है, किंतु केवल यह शरीर नश्वर है। आत्मा अजर अमर है, आत्मा को कोई काट नहीं सकता अग्नि जला नहीं सकती और पानी गीला नहीं कर सकता। जिस प्रकार से एक वस्त्र बदलकर दूसरे वस्त्र धारण किए जाते हैं उसी प्रकार आत्मा एक शरीर का त्याग करके दूसरे जीव में प्रवेश करती है

🚩🪴गीता ज्ञान🪴🚩 गीता में छिपा है जीवन जीने का सार, जानिए उसके कुछ अंश  वनिता कासनियां पंजाब द्वारा 🚩🪴गीता ज्ञान🪴🚩 गीता के उपदेश (गुगले प्रतीकात्मक तस्वीर) जब अर्जुन युद्ध भूमि में जाते हैं तो अपने सामने पितामह और सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो जाते हैं। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें सही ज्ञान देते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे पार्थ ये युद्ध धर्म और अधर्म के मध्य है । इसलिए अपने शस्त्र उठाओ और धर्म की स्थापना करो। भगवान श्री कृष्ण धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। मनुष्य को भी धर्म का पालन करना चाहिए। प्रतीकात्मक तस्वीर गुगल  जब अर्जुन युद्ध भूमि में जाते हैं तो अपने सामने पितामह और सगे संबंधियों को देखकर विचलित हो जाते हैं। तब भगवान श्री कृष्ण उन्हें सही ज्ञान देते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हुए कहते हैं कि हे पार्थ ये युद्ध धर्म और अधर्म के मध्य है । इसलिए अपने शस्त्र उठाओ और धर्म की स्थापना करो। भगवान श्री कृष्ण धर्म के मार्ग पर चलने की शिक्षा देते हैं। मनुष्य को भी धर्म का पालन करना चाहिए। मह...

🚩🌺🪴गीता ज्ञान🪴🌺🚩 महाराज युधिस्ठिर ने बताया जीवन का सबसे बड़ा क्या है By वनिता कासनियां पंजाब , यूँ तो हम सब जानते ही हैं कि आश्चर्य किसे कहते हैं लेकिन आप में से बहुत लोग शायद ना जानते हों की जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?, महाराज युधिस्ठिर के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य है अमर बनने की इच्छा । महाराज युधिस्ठिर के यक्ष को जवाब एक बार की बात है महाराज युधिस्ठिर अज्ञातवाश के समय वन में सभी पांडवों के साथ थे । जंगल में घूमते घूमते सभी पांडवों को प्यास लगने लगी । महाराज युधिस्ठिर ने एक एक करके सभी पांडवों को पानी लाने के लिए भेजा । सभी पानी लेने के लिए तो गए लेकिन वापिस लौटकर कोई भी नहीं आया । तब महाराज युधिष्ठिर ने स्वंय पांडवों को ढूढ़ने का प्रयास किया । जब महाराज युधिष्ठिर एक सरोवर के पास गए तो उन्होंने देखा कि सारे पांडव वहां बेहोस पड़े हुए हैं । महाराज युधिष्ठिर ने सोचा कि पांडवों की खबर बाद में लेते हैं पहले क्यों न सरोवर से कुछ पानी ही पी लिया जाये । जैसे ही महाराज युधिष्ठिर सरोवर से पानी पीने लगे तो वहां एक आवाज आयी जिसने उन्हें पानी पीने से रोक दिया । वह आवाज दरअसल यक्ष की थी जो उस सरोवर की रखवाली किया करते थे । यक्ष ने महाराज युधिष्ठिर को पानी पीने से रक दिया और उनके सामने एक शर्त रखी । यक्ष ने कहा कि अगर महाराज युधिष्ठिर उनके सवालों का जवाब दे देंगे तो वह सरोवर से पानी पी सकते हैं नहीं तो वो भी अपने भाइयों की तरह ही मृत्यु को प्राप्त हो जायेंगे । महाराज युधिष्ठिर ने यक्ष की शर्त मंजूर कर ली और यक्ष एक एक करके महाराज युधिष्ठिर से सवाल पूछने लगे । उन्होंने पहला सवाल पुछा कि वायु से भी तेज क्या है तो महाराज युधिष्ठिर ने जवाब दिया कि वायु से भी तेज मन है । वायु को तो एक जगह से दूसरी जगह तक पहुँचने में कुछ वक्त लगता है लेकिन मन तो कहीं भी बिना वक्त लगाए ही पहुचन सकता है । जैसे कि आप एक बार ताज महल देख कर आये हैं और दोबारा ताजमहल देखना चाहते हैं तो आपको वहां जाना पड़ेगा लेकिन मन में ताजमहल की तस्वीर तुरंत ही उभर कर आ जाएगी । इसी क्रम से सवाल पूछते हुए कहा की आकाश से भी ऊँचा कौन होता है तो महाराज युधिष्ठिर ने कहा कि पिता का साया आकाश से भी ऊँचा होता है । धरती से भी भारी कौन है पूछने पर महाराज युधिष्ठिर ने माता को धरती से भी भरी बताया । इसी क्रम से आगे बढ़ते हुए यक्ष ने पुछा कि सूर्य किस की आज्ञा से उदय होता है तो महाराज युधिष्ठिर ने कहा कि भगवान की आज्ञा से । विदेश जाने वाले का साथी कौन है पूछने पर बिद्या को विदेश जाने वाले का साथी बताया । इसी क्रम से जब यक्ष ने महाराज युधिष्ठिर से पुछा की जीवन का सबसे बड़ा अस्चर्य क्या है तो उन्होंने कहा कि सबसे बड़ा आश्चर्य तो यही है कि रोज लोग एक दुसरे को मरते हुए देखते हैं लेकिन सोचते हैं कि वो कभी नहीं मरेंगे और हमशा जीने की इच्छा रखते हैं । लोग देखते हैं कि मेरे आस पड़ोस वाले सभी एक एक करके मर रहे हैं और फिर भी वह सोचते हैं कि उन्हें कभी नहीं मरना पड़ेगा यही जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य है । महाराज युधिस्ठिर ने अपनी सूझबूझ से किया अपने भाईयों को जीवित जब महाराज युधिस्ठिर ने यक्ष के सारे सवालों का सही सही जवाब दे दिया तो वे बड़े प्रसन्न हुए और उन्होंने महाराज युधिस्ठिर से वरदान मांगने को कहा । महाराज युधिस्ठिर ने अपने भाइयों को जीवित कर देने का वरदान यक्ष से माँगा । यक्ष ने कहा कि वह केवल दो भाईओं को ही जीवित कर सकते हैं । आपको यह जानकर हैरानी होsगी कि महाराज युधिस्ठिर ने ये जानते हुए भी कि भीम और अर्जुन युद्ध जीतने के लिए महत्त्वपूर्ण हैं उन दोनों को जीवित नहीं किया । महाराज युधिस्ठिर जानते थे कि आने वाले समय में महाभारत का युद्ध होने वाला है और अगर वो भीम और अर्जुन को जीवित नहीं करेंगे तो वे युद्ध नहीं जीत सकते । दरअसल भीम, अर्जुन और महाराज युधिस्ठिर माता कुंती के पुत्र थे और नकुल और सहदेव माता माधवी के पुत्र थे । इसलिए महाराज युधिस्ठिर ने सोचा कि अगर एक पुत्र माता कुंती के जीवित बचते हैं और एक पुत्र माधवी के तो यह न्याय पूर्ण होगा और अगर भीम और अर्जुन जीवित बच गए लेकिन माता माधवी के दोनों पुत्र मारे गए तो यह अन्याय होगा । महाराज युधिस्ठिर ने न्याय और धर्म की रक्षा के लिए आने वाली युद्ध में होने वाली जीत को भी डाव पर लगा दिया महाराज युधिस्ठिर को धर्मराज कहा जाता है और उन्होंने यहाँ यह साबित कर दिया कि वे धर्म को सबसे बड़ा मानते हैं । यक्ष महाराज युधिस्ठिर का न्याय देखकर बहुत ही ज्यादा प्रभावित हुए और उन्होंने पांचो पांडवों को फिर से जीवित कर दिया । लोग अमर क्यों होना चाहते हैं? महाराज युधिष्ठिर के अनुसार अमर होने की इच्छा ही इस दुनिया में सबसे बड़ा आश्चर्य है । फिर भी न जाने लोग अमर क्यों होना चाहते हैं? इसका कारण शास्त्रों में बताय गया है कि सारे जीव भगवान के अंश स्वरूप ही हैं । क्योंकि भगवान अमर हैं इसलिए हम भी अमर होना चाहते हैं । अमर होना इस जगत में संभव नहीं है क्योंकि इस भौतिक जगत को नश्वर बताया गया है । इस जगत में जिसने भी जन्म लिया है उसकी मृत्यु होना निश्चित है । अमर होने की इच्छा रखने का एक कारण यह भी है कि लोग मरने से डरते हैं इसलिए वे अमर होना चाहते हैं । प्राचीन काल में कई राक्षस रहे हैं जो अमर होने के लिए शिव जी की तपस्या किया करते थे लेकिन आज तक कोई भी अमर नहीं हो पाया । पृथ्वी लोक की तो बात ही जाने दें क्योंकि स्वर्ग लोक में भी कोई अमर नहीं है । तो मित्रो केसा लगा आपको आज का यह पोस्ट । इसी तरह की अध्यात्मिक कहानियाँ पड़ते रहने के लिए हमारा व्हाटसप्प् ग्रुप जॉइन करें । जॉइन करने के लिए यहाँ क्लिक

🚩🌺🪴गीता ज्ञान🪴🌺🚩 महाराज युधिस्ठिर ने बताया जीवन का सबसे बड़ा क्या है   By  वनिता कासनियां पंजाब  , यूँ तो हम सब जानते ही हैं कि आश्चर्य किसे कहते हैं लेकिन आप में से बहुत लोग शायद ना जानते हों की जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य क्या है?, महाराज युधिस्ठिर के अनुसार जीवन का सबसे बड़ा आश्चर्य है अमर बनने की इच्छा । महाराज युधिस्ठिर के यक्ष को जवाब एक बार की बात है महाराज युधिस्ठिर अज्ञातवाश के समय वन में सभी पांडवों के साथ थे । जंगल में घूमते घूमते सभी पांडवों को प्यास लगने लगी । महाराज युधिस्ठिर ने एक एक करके सभी पांडवों को पानी लाने के लिए भेजा । सभी पानी लेने के लिए तो गए लेकिन वापिस लौटकर कोई भी नहीं आया । तब महाराज युधिष्ठिर ने स्वंय पांडवों को ढूढ़ने का प्रयास किया । जब महाराज युधिष्ठिर एक सरोवर के पास गए तो उन्होंने देखा कि सारे पांडव वहां बेहोस पड़े हुए हैं । महाराज युधिष्ठिर ने सोचा कि पांडवों की खबर बाद में लेते हैं पहले क्यों न सरोवर से कुछ पानी ही पी लिया जाये । जैसे ही महाराज युधिष्ठिर सरोवर से पानी पीने लगे तो वहां एक आवाज आयी जिसने उन्हें पानी पीने से रोक दिया । वह...

बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रमभगवान श्री राम ने किस तरह तोड़ा सुग्रीव का घमंड वनिता कासनियां पंजाब द्वाराजब भगवान श्री राम वनवास में थे तो दुष्ट एवं अधर्मी रावण माता सीता का हरण कर लिया, रामायण में बताया गया है कि जब भगवान सुग्रीव से मदद मांगने गए तो सुग्रीव ने भगवान श्री राम की अवहेलना कर दी क्योंकि सुग्रीव उन्हें साधारण इंसान समझने की भूल कर बैठे ।भगवान श्री राम का वनवास समस्त असुरों के संहार के लिए ही था और ऐसा ही हुआ । लेकिन भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अवतरित हुए थे इसलिए उन्होंने अपने आचरण से बताया कि एक आदर्श पुत्र, राजा, पति, भाई अथवा एक आदर्श मनुष्य को केसा होना चाहिए ।भगवान चाहते तो एक क्षण में ही रावण को मार सकते थे लेकिन उन्होंने आदर्श व्यवहार का प्रदर्शन करते हुए सुग्रीव से मदद लेने का विचार किया ।सुग्रीव द्वारा भगवान राम की परीक्षासुग्रीव ने पहली गलती तो यह कर दी कि जब भगवान श्री राम उनके राज्य में आए तो उन्होंने श्री राम की परीक्षा के लिए हनुमान जी को भेजा ।दूसरी गलती सुग्रीव ने यह कर दी कि जब भगवान श्री राम और लक्ष्मण उनके पास आए तो उन्होंने श्री राम को बैठने के लिए स्थान दिया लेकिन लक्ष्मण जी को बैठने के लिए स्थान नहीं दिया । हनुमान जी ने सुग्रीव के घमंड को देखते हुए लक्ष्मण जी के लिए बैठने का स्थान दिया और खुद उनके उनके चरणों के पास बैठ गए ।तीसरी गलती जो सुग्रीव ने की वह है भगवान के शस्त्र कौशल की परीक्षा । सुग्रीव ने कहा कि वह भगवान श्री राम की मदद तभी करेंगे जब वह यह सिद्ध करें कि वे रावण को मारने में समर्थ हैं ।इसी का परीक्षण कराने के लिए सुग्रीव ने भगवान श्री राम को जंगल में भेजा जहां उनसे सात पेड़ गिराने के लिए सुग्रीव ने कह । भगवान श्री राम ने एक ही बाण से सातों पेड़ों को गिरा दिया । फिर उनसे हड्डियों के बने पहाड़ों को तोड़ने के लिए कहा गया और भगवान ने एक ही बाण में पहाड़ के परखिच्छे उड़ा दिए ।सुग्रीव को अभी भी यह समझ नहीं आया कि उसने घमंडवश भगवान को साधारण समझने की भूल कर दी है और परीक्षा लेकर उनको परेशान करने का पाप अपने सिर ले लिया है ।सुग्रीव ने भगवान श्री राम के सामने रखी आखिरी शर्तअंत में सुग्रीव ने कहा कि अगर भगवान श्री राम बालि का वध करके उसका राज्य सुग्रीव को दिला दें तो वे श्री राम की मदद करेंगे ।दरसल बालि सुग्रीव का भाई था और बहुत ही अधिक ताकतवर था । एक बार उसने रावण को अपने हाथों में दबाकर सातों द्वीपों की सैर कराई थी । तब से रावण बालि से बहुत अधिक डरता था और इसके पास नहीं आता था । एक बार की बात है बालि के राज्य पर एक राक्षस ने हमला कर दिया और बालि और उनके भाई सुग्रीव उसका वध करने के किए बाहर निकले ।राक्षस एक गुफा के अंदर चला गया और बालि भी उसे मारने के लिए अंदर चला गया । बालि ने गुफा के द्वार पर सुग्रीव को तैनात किया ताकि वो राक्षस गुफा के द्वार से बाहर ना भाग पाए । सुग्रीव ने देखा कि गुफा के अंदर से खून की नदी बह रही है और अंदर से किसी के चिल्लाने की आवाज आ रही है ।सुग्रीव ने सोचा कि राक्षस ने उसके भाई बालि को मार डाला है और वह अब सुग्रीव के राज्य को हड़प लेगा । यह सोचकर सुग्रीव ने गुफा का द्वार एक बहुत बड़े पत्थर से बंद कर दिया । सुग्रीव ने जब वापिस जाकर राज्य में यह खबर दी कि बालि की मृत्यु हो गई है तो सुग्रीव को किसकिंधा का नया राजा बना दिया गया ।असल में बालि जिंदा बच गाया और उसने राक्षस को मार डाला । राक्षस को मारकर जब बालि वापिस आया तो उसने गुफा का द्वार बंद पाया । बालि लगा कि सुग्रीव ने राज्य के लालच में उसे धोका दिया है । बलि ने अपने राज्य में जाकर सुग्रीव को बहुत बुरी तरह मारा । सुग्रीव ने समझाने की कोशिश की लेकिन बलि नहीं माना ।सुग्रीव जैसे तैसे अपनी जान बचाकर भागे और अपना राज्य खो बैठे । सुग्रीव ने कहा कि बिना राज्य के वो भगवान श्री राम की मदद नहीं कर सकते इसलिए अगर भगवान सुग्रीव को उनका राज्य वापिस दिला दें तो वे उनकी मदद जरूर करेंगे । भागवान श्री राम सुग्रीव की शर्त को मान गए ।सुग्रीव का घमंड हुआ चूरभगवान श्री राम ने योजना बनाई कि सुग्रीव जाकर बलि को युद्ध के लिए बुलाएंगे और भगवान श्री राम बाण मारकर उसे मार देंगे । बालि को यह वरदान प्राप्त था कि सामने वाले की आधी शक्ति उसके पास आ जाती थी और इसलिए बालि को कोई हारा नहीं पाता था ।सुग्रीव ने बालि को युद्ध के लिए ललकारा । बालि गुस्से में आग बबूला हो गया और सुग्रीव को मारने के लिए बाहर आया । भगवान श्री राम ने सुग्रीव को एक माला दी थी जिससे सुग्रीव की पहचान हो सके । दरअसल बालि और सुग्रीव एक जैसे ही दिखते थे, बालि ने एक ही वार में सुग्रीव के गले की माला तोड़ दी ।असल में भगवान को सुग्रीव को पहचानने के लिए माला की कोई जरूरत नहीं थी फिर भी भगवान ने बालि को नहीं मारा और सुग्रीव को पिटने दिया । बालि ने सुग्रीव को बहुत मारा और सुग्रीव की जान बहुत ही मुश्किल से बची ।सुग्रीव को लगा कि माला के टूट जाने की वजह से यह सब हुआ है लेकिन भगवान के प्रति पिछली तीन चार गलतियां करने की वजह से ही सुग्रीव को इतनी मार पड़ी ।दूसरी बार सुग्रीव ने अच्छे से माला पहनी और बालि को युद्ध के लिए ललकारा । इस बार भी बालि ने सुग्रीव के गले में पड़ी माला को पहले हीर वार में तोड़ दिया । इस बार सुग्रीव ने सोच लिया कि अब उनके प्राण नहीं बचेंगे । लेकिन इस बार भगवान श्री राम ने बालि को तीर मार दिया और उसकी वहीं पर ही मृत्यु हो गई ।इसी तरह की अध्यात्मिक और ज्ञानवर्धक पोस्ट की जानकारी पाने की लिए हमारे ब्लॉग ग्रुप से जुडें । ग्रुप से जुड़ने के लिए यहां क्लिक करें – Join बाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम Groupबाल वनिता महिला वृद्ध आश्रम

🚩🥦गीता ज्ञान 🥦🚩 भगवान श्री राम ने किस तरह तोड़ा सुग्रीव का घमंड  वनिता कासनियां पंजाब द्वारा जब भगवान श्री राम वनवास में थे तो दुष्ट एवं अधर्मी रावण माता सीता का हरण कर लिया, रामायण में बताया गया है कि जब भगवान सुग्रीव से मदद मांगने गए तो सुग्रीव ने भगवान श्री राम की अवहेलना कर दी क्योंकि सुग्रीव उन्हें साधारण इंसान समझने की भूल कर बैठे । भगवान श्री राम का वनवास समस्त असुरों के संहार के लिए ही था और ऐसा ही हुआ । लेकिन भगवान श्री राम मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अवतरित हुए थे इसलिए उन्होंने अपने आचरण से बताया कि एक आदर्श पुत्र, राजा, पति, भाई अथवा एक आदर्श मनुष्य को केसा होना चाहिए । भगवान चाहते तो एक क्षण में ही रावण को मार सकते थे लेकिन उन्होंने आदर्श व्यवहार का प्रदर्शन करते हुए सुग्रीव से मदद लेने का विचार किया । सुग्रीव द्वारा भगवान राम की परीक्षा सुग्रीव ने पहली गलती तो यह कर दी कि जब भगवान श्री राम उनके राज्य में आए तो उन्होंने श्री राम की परीक्षा के लिए हनुमान जी को भेजा । दूसरी गलती सुग्रीव ने यह कर दी कि जब भगवान श्री राम और लक्ष्मण उनके पास आए तो उन्होंने...